Ghar Ki Yaad Shayari: तो दोस्तों आज हम आप लोगों के साथ साझा करने वाले हैं घर की यादें शायरी इन हिंदी (Ghar Ki Yaadein Shayari In Hindi) का बहुत सारा कलेक्शन जो कि आप लोगों को जरूर पसंद आएगा।
घर की यादें शायरी इन हिंदी आप ढूंढ रहे हो इसका मतलब यह है कि आपको अपने घर की याद सता रहे हैं अपने घर के लोगों की यादें आ रही है या फिर आप अपने घर के साथ-साथ अपने गांव की भी याद आ रही है। इसका मतलब यह है कि आप अपने घर से दूर हो किसी भी कारणवश दूर होकर आप अपने घर को और घर वालों याद कर रहे हो।
घर की यादें शायरी इन हिंदी आप कहीं से भी सर्च करके ढूंढते हुए यहां पर आए हैं तो आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी और आप जो शायरी ढूंढ रहे हो वह आपको जरूर यहां पर मिल जाएगी हमने यहां पर बहुत सारी शायरियां स्टेटस कोट्स आदि का कलेक्शन करके रखा है उनमें से कोई न कोई शायरी स्टेटस कोट्स आपको जरूर पसंद आएगा और उसको आप अपने सोशल मीडिया अकाउंट जैसे कि व्हाट्सएप इंस्टाग्राम फेसबुक पर स्टोरी लगा सकते हैं।
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Ghar Ki Yaadein Shayari In Hindi Images
मौत न आई तो अगली छुट्टी में घर जाएँगे।
“मोहम्मद अल्वी”
काश मेरा घर तेरे घर के सामने होता,
मोहब्बत न सही दीदार तो होता।
मुझे ख़बर थी मेरा इन्तजार घर में रहा,
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा।
दिल मे घर करके बैठे है ये जो ज़िद्दी से ख़्वाब,
कागज पे उतार मै वो सारे मेहमान ले आऊँ।
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़,
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए।
नज़र की चोट जिगर में रहे तो अच्छा है,
ये बात घर की है, घर में रहे तो अच्छा है।
“दाग देहलवी”
बड़ी चोट खायी जमाने से पहले,
जरा सोचिये दिल लगाने से पहले।
मुहब्बत हमारी नहीं रास आई,
लगी आग घर को बसाने से पहले।
ए मौत, जरा पहले आना गरीब के घर,
कफ़न का खर्च दवाओं में निकल जाता है।
उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है।
“कफ़ील आज़र अमरोहवी”
हसीना ने मस्जिद के सामने घर क्या खरीदा,
पल भर में सारा शहर नमाज़ी हो गया।
घर की याद शायरी इन हिंदी इमेजेज
सुना है कि उसने खरीद लिया है करोड़ो का घर शहर में,
मगर आँगन दिखाने वो आज भी बच्चों को गाँव लाता है।
ये सर्द रात ये तन्हाईयाँ ये नींद का बोझ,
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते।
शहर भर में मजदूर जैसे दर-बदर कोई न था,
जिसने सबका घर बनाया उसका घर कोई न था।
अखबार तो रोज़ आता है घर में,
बस अपनों की ख़बर नहीं आती।
दुनियाँ भर की यादें हम से मिलने आती है,
शाम ढले इस सूने घर में मेला सा लगता है।
एक ही ख्वाब देखा है कई बार मैंने,
तेरी साडी में उलझी है चाबियां मेरे घर की ।
ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों मे हम,
रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है।
आमाल मुझे अपने उस वक़्त नज़र आए,
जिस वक़्त मेरा बेटा घर पी के शराब आया।
उलझी शाम को पाने की ज़िद न करो,
जो ना हो अपना उसे अपनाने की ज़िद न करो।
इस समंदर में तूफ़ान बहुत आते है,
इसके साहिल पर घर बनाने की ज़िद न करो।
क्या शहर क्या गांव, सब बदलने लगे,
एक घर में कई चूल्हे जलने लगे।
Ghar Ki Yaad Aati Hai Shayari
बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या है,
मौत से आँखे मिलाने की जरूरत क्या है।
सब को मालूम है बाहर की हवा है कातिल,
यूँ ही कातिल से उलझने की जरूरत क्या है।
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़़ते देखे,
चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा।
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़सीम हुईं,
तब मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा।
अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है,
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है।
लगेगी आग तो आयेंगे घर कई जद में,
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।
घर से दूर हैं तो घर की याद आती है,
वो बचपना वो छोटी सी मुहब्बत याद आती है।
कभी मन होता है कि भूल जायें सब कुछ मगर,
हाथ जलता है जब तवे से तो माँ की याद आती है।
अगर तेरे बिना जीना आसान होता तो,
कसम मुहब्बत की तुझे याद करना भी गुनाह समझते।
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रूठे हुए अपनों को मना लूँगा एक दिन,
दिल का घर फिर से बसा लूँगा एक दिन।
लगने लगे जहां से हर मंजर मेरा मुझे,
ख्वाबों का वो जहान बना लूँगा एक दिन।
अभी तो शुरूआत हुई है इस सफ़र की,
बेरंग जिंदगी में रंग सजा लूँगा एक दिन।
घर से निकलो तो पता चलता है,
जख्म उसका भी नया लगता है।
रास आ जाती है तन्हाई भी,
एक-दो रोज बुरा लगता है।
कितने जालिम है दुनिया वाले,
घर से निकलो तो पता चलता है।
बाज़ार जा के ख़ुद का कभी दाम पूछना,
तुम जैसे हर दुकान में सामान हैं बहुत।
आवाज़ बर्तनों की घर में दबी रहे,
बाहर जो सुनने वाले हैं शैतान हैं बहुत।
ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर,
बस अपनी ही धुन बस अपने सपनो का घर,,
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।
कल तक जो साथ थे आज अलग क्यूँ बैठे हैं,
घर के सामने इतनें सामान बिख़राए क्यूँ बैठे हैं।
फिर से ये दोनों भाई पंच बुलाए यहाँ क्यूँ बैठे हैं,
दोनों भाई बंटवारे का मुद्दा लिए यहाँ क्यूँ बैठे हैं।
बड़े अनमोल है ये खून के रिश्तें,
इनको तू बेकार ना कर।
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई,
घर के आँगन में दीवार ना कर।
घर से दूर है मस्जिद क्या चला जाएँ,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसा दिया जाएँ।
खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है,
मैं वह कतरा हूँ समन्दर मेरे घर आता है।
काश मेरा घर तेरे घर के करीब होता,
बात करना न सही देखना तो नसीब होता।
बहुत आसान है जमीन पे घर खड़ा कर लेना,
जिन्दगी गुजर जाती है दिल में घर बनाने के लिए।
गर्मी बहुत थी दोस्तो अपने भी खुन में,
घर की जिम्मेदारियो ने झुकना सिखा दिया।
तेरा साथ छूटा है सँभलने में वक्त तो लगेगा,
हर चीज इश्क़ तो नहीं जो एक पल में हो जाये।
परिवार की अहमियत तब समझ में आती है,
जब दूर शहर में घर की यादें सताती है।
मेहमान की तरह घर से आते-जाते,
बेघर हो गये है हम कमाते-कमाते।
किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से,
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा।
“निदा फ़ाज़ली”
Ghar Ki Yaad Two Line Shayari
घर की खूबसूरती घर की बनावट से नहीं,
वहा रहने वाले लोगों से होती हैं।
घर याद आता है माँ याद आती है,
जब यह शहर भूखे पेट सुलाती है।
रोटी की खुश्बू इश्क पर कैसे भारी होती है,
ये पूछ जिसके कंधे पर घर की जिम्मेदारी होती है।
रातो में घर का दरवाज़ा खुला रखती हूँ,
काश कोई लुटेरा आये और मेरे ग़मों को लुट ले जाए।
उस को रूखसत तो किया था मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला।
बहुत दूर है तुम्हारे घर से हमारे घर का किनारा,
पर हम हवा के हर झोंके से पूछ लेते हैं क्या हाल है तुम्हारा।
काश मेरा घर तेरे घर के बराबर होता,
तू ना आती तेरी आवाज़ तो आती।
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है,
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है।
“शहरयार”
मेरे घर के तमाम दरवाज़े,
तुम से करते हैं प्यार आ जाओ।
चंद रूपयों के खातिर घर को छोड़ देना पड़ता है,
दिल नहीं लगता शहर में मगर दिल को तोड़ देना पड़ता है।
अजीब है बात मगर कहना जरुरी है__
आँखों में अपने है मगर उन्हें भुलाना जरुरी है,,
जान से प्यारा है अपना घोंसला मगर उसे छोड़ कर जाना जरुरी है।
जाने कैसे कुछ परिंदे छोड़ कर अपना बसेरा,
बना लिया करते है इधर उधर डेरा।
वक़्त का किस्सा भी अजीब है जनाब,
सुबहे को जिस घर से भाग कर निकले थे,,
शाम होने पर लोगो से, हम उसी घर का पता पूछ रहे है।
कितने तनहा हो गए है घर से दूर रहकर,
जी तो रहे है मगर मजबूर होकर।
याद आती है हमको दिन के हर पेहेर में,
अब जो रहने लगे है घर से दूर हम ये नौकरी वाले शहर में।
दूर हु तुमसे पर फिर भी दूर नहीं,
मजबूर हु मिलने को पर फिर भी में मजबूर नहीं।
इस चिराग ही जला देना मेरे नाम का, माँ,
मेरा साया ही सही कोई तो पहुंच सकेगा,,
इस दिवाली वहाँ।
मुझे मालूम था की वो रास्ते मेरी मंजिल तक नहीं जाते थे,
क्योकि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे।
ख़ुशी के माहौल में मोत का फरमान आ रहा है,
जो कहते थे की गाँव में क्या रखा है,,
उन्हें भी आज गाँव याद आ रहा है।
गाँव की गलियों ने भी पहचानने से इंकार कर दिया,
यूँ किसी से ज्यादा दिन दूर रहना अच्छा नहीं होता।
घर में सबसे छोटा होना भी आसान नहीं,
जिम्मेदाररियाँ भले ही ना हो, उम्मीदे बहोत होती है हमसे।
Ghar Ki Yaad Shayari In Urdu
ये अनजान सा शहर, सुनी सड़को पर क्या क्या नहीं होता,
पूछिए उनसे जिनके घर होते हुए भी घर नहीं होता।
कोशिश तो यही है की घर के पास आ जाये,
आज यहाँ है, क्या पता किस्मत कल कहा ले जाये।
तुम अभी नए हो इस शहर से, तुम्हे शहर अच्छा लगा,
मैं वाक़िफ़ हू इस शहर के हर शख्स से मुझे तो मेरा घर अच्छा लगा।
|| घर का बटवारा शायरी ||
जुस्तजू इ मस्सर्रत में घर से निकला था में,
इल्म अब हुआ के सब खुशियां तो घर में है।
अब घर की याद में आँखे बस नाम हो जाती है,
क्यों की खुल के रोने की आजादी तो बस घर में है।
बहनो के साथ लड़ाई, भाई के साथ पढाई,
माँ का प्यार, पापा का दुलार।
दोस्तों की यादे मोहल्ले की राते,
क्या बताऊ कितना याद आ रहा है सब,,
हां घर याद आ रहा है अब।
दिल में अब भी दर्द बहोत है,
उनकी बहोत याद आती है।
घर छोड़े सालो हो गए,
मुझे माँ की याद बहोत सताती है।
|| गाँव की याद शायरी ||
घर की दहशत से लरजता हू,
मगर जाने क्यों,,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है।
घर को घर बनाने के लिए घर से दूर चले जाते है,
दूसरे शहरों में अपना आशियाना बना लेते है।
घर में मेहमान आने पर, सबसे लाडला बेटा बताती थी माँ,
पर सपनो के खातिर अब खुद ही मेहमान बनकर घर जा पते है।
|| घर की जिम्मेदारी शायरी ||
फिर कब आओगे, यह घर ने मुझसे चलते वक़्त पूछा था,
यही आवाज अब तक गूंजती है मेरे कानो में।
किसे पसंद है महलो की आस में घर से दूर रहना,
कम्बख्त खली जेब ने और भूखे पेट ने मुसाफिर बना रखा है।
आज फिर घर लौटना मुश्किल हो गया,
कुछ रिश्तो ने इस क़दर घायल किया।
यादों के किस्से पुराने हो गए,
हमको खुलकर हंसे ज़माने हो गए।
कहते थे हम जिसे हक से अपना,
उस घर को छोड़े आज ज़माने हो गए।
देखकर मुस्कुराते हैं यूं तो सभी यहां,
किसी को अपना कहे पर ज़माने हो गए।
यादों में ताज़ा हैं किस्से बहुत से मगर,
हकीक़त में उन्हें मुरझाए ज़माने हो गए ।
सुखद अहसास था जो, अपनों के प्यार का हमें,
उस मृग मरीचिका को टूटे ज़माने हो गए।
आकाश में उड़ रहे पंछी को भी घर की याद सताती है,
चाहे हो दूर कितने भी घर की याद आती है।
अपनी घर के बाहर रहने की अलग कहानी है,
जिसमे हर दिन कुछ सिखने की बारी है।
कोई खाना बनाना सिख जाता है,
तो कोई साफ सफाई करने लग जाता है।
पढने का भी अलग मजा होता है,
आता है परीक्षा तो सब पढने लग जाते है।
वरना सब मस्ती मे अपनी अपनी कहानी सुनाते है,
बस इन सब के बीच एक ही कमी रह जाती है।
हर दिन जो घर की याद जो आती है।
“Sumit Verma”
ढूंढ रहा है मेरा मन आज फिर उन गलियों को,
जहाँ मेरा बचपन खेला करता था।
बाहर का खाना जीभ के लिए अच्छा होता है,
जबकि घर का खाना शरीर के लिए अच्छा होता है।
सुकून की तलाश में हम कई दर घूम आए,
लेकिन घर जैसा सुकून कहीं और नहीं पाया।
जब हम व्यस्त होते है तो खुद को भी भूल जाते है,
मगर” जब जब मन शांत होता है,,
घर-घर के बहार लगती वो दरबार याद आती है।
गुलामी तो हम सिर्फ अपने ‘माँ-बाप’ की करते है,
वरना, दुनिया के लिए तो हम कल भी बादशाह थे, और आज भी।
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये ‘मालूम हुआ,
घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना।
दूसरों के घर इतना ना जाइये कि अपना घर पराया लगने लगे,
गैर अपने लगने लगें और अपने गैर लगने लगें।
कुछ लोग परिवार की ख़ुशी सिर्फ़,
अधिक पैसे को समझते है जो कि सच नहीं है।
घर पर शायरी
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता।
जब वो घर मेरे आएगी, तो संग अपने खुशियाँ भी लाएगी,
मेरे सारे गम दूर करके, जीवन में खुशियाँ भर जाएगी।
आपके परिवार ने आपके लिए जो किया,
उससे कही ज्यादा आप अपने परिवार के लिए कीजिये।
हर दिन शाम से पहले घर आना सिखाया था माँ ने,
इस तरह अच्छी आदतों के साथ जीना सिखाया था माँ ने।
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है,
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन।
“साक़ी फ़ारुक़ी”
अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो,
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा।
“नज़ीर अकबराबादी”
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया,
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला।
“अलीम मसरूर”
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते,
किसी की आँख में रहकर संवर गए होते।
“बशीर बद्र”
दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है,
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा।
“मज़हर इमाम”
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ,
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है।
“इफ़्तिख़ार आरिफ़”
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं,
मैं अपने घर में हूँ या मैं किसी मज़ार में हूँ।
“मुनीर नियाज़ी”
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं।
“निदा फ़ाज़ली”
ऐ दोस्तों, तुमसे हर दिन मिलते जरूर,
जिम्मेदारियाँ खींच लाई है हमें घर से दूर।
घर जाकर जब बच्चों को खाना खिलाया होगा,
बच्चों को क्या मालूम बाप ने किस हाल में कमाया होगा।
कब आओगे ये घर ने मुझ से चलते वक्त पूछा था,
यहीं आवाज अब तक गूंजती है मेरे कानों में।
चले हैं घर से तो धूप से भी जूझना होगा,
सफ़र मे हर जगह घने बरगद नही मिलते।
कैफ़’ परदेस में मत याद करो अपना मकाँ,
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा।
“कैफ़ भोपाली”
अब तक न ख़बर थी मुझे उजड़े हुए घर की वो आए,
तो घर बे-सर-ओ-सामाँ नज़र आया।
“जोश मलीहाबादी”
बारिश का इंतज़ार कितनी सिद्दत से करता है किसान,
मालूम है उसे जबकि उसका घर मिट्टी का है।
घर अपना बना लेते हैं, जो दिल में हमारे,
हम से वो परिंदे, उड़ाये नहीं जाते।
Ghar Ki Yaad Shayari In English
Home is where I can look and feel ugly and enjoy it.
Chase your dream but always know the road that will lead you Home again.
Home is the starting place of love, hope and dreams.
Nature is not a place to visit. It is Home.
“Gary Snyder”
Where thou art, that is Home.
“Emily Dickinson”
Love begins by taking care of the closest ones, the ones at Home.
“Mother Teresa”
God is at Home, it’s we who have gone out for a walk.
“Meister Eckhart”
Home is where the heart is.
“joseph C. Neal”
Home wasn’t built in a day.
“Jane Sherwood Ace”
Peace, that was the other name for Home.
“Kathleen Norris”
Seek home for rest, for Home is best.
“Thomas Tusser”
Charity begins at Home,
but should not end there.
“Thomas Fuller”
A man’s Home is his wife’s castle.
“Alexander Chase”
Home is a shelter from storms-all sorts of storms.
“William J. Bennett”
Coming Home to my family afterward makes the work richer,easier and more fun.
“Edie Falco”
Don’t leave Home without your sword, your intellect।
There is nothing more important than a good, safe, secure Home।
Home is where our story begins।
I love cats because I enjoy my Home,
and little by little, they become its visible soul.
“Jean Cocteau”
Well, sometimes Home is a person. Beth Revis.
Where thou art, that is Home.
“Emily Dickinson”
Missing those nights, missing that sky, I’ve been missing home
If someone asks me if you miss home? I would say “I miss Home
Home is where I want to back at-once,
cause I can’t stay missing my Home.
What can you do to promote world peace?
Go Home and love your family.
No matter who you are or where you are,
instinct tells you to go Home.
The prospect of going Home is very appealing
I can’t keep calm,
I keep missing Home.
Home is where there’s one to love us.
“Charles Swain”
Home is where you feel loved,
appreciated, and safe.
“Tracey Taylor”
There’s nothing like staying at Home for real comfort.
Ghar Ki Yaad Status In Hindi
आज भी मेरी आंखे घर के दरवाज़े पर टिकी रहती हैं,
की तुम जरुर आओगे।
ये घर खाली-खाली सा लगता हैं,
जब तुम नहीं होती।
मोहब्बत मुक्म्मल न हो तो ही अच्छा हैं,
वरना महबूब के घर झाङू पोंछा करना पङता ।
सुनो, तुम एक बार पुछ लो कि ‘कैसा हुँ,
घर मेँ पङी सारी दवाईयाँ ना फेँक दुँ तो कहना।
इंसान चाहता है कि उसे उड़ने को पर मिले,
परिंदा चाहता है कि उसे रहने को घर मिले।
जहां सजदा हो बुजुर्गों का वहाँ की तहजीब अच्छी है,
जहाँ लांघे न कोई मर्यादा उस घर की दहलीज अच्छी है।
वापसी का कोई सवाल ही नहीं,
घर से निकला हूँ आँसुओ की तरह।
घर अंदर ही अंदर टूट जाते है,
मकान खड़े रहते है बेशर्मों की तरह।
वो शाख है न फूल अगर तितलियाँ न हो,
वो घर भी कोई घर है जहाँ बच्चियाँ न हो।
थक चूका हूँ मेहमान की तरह घर आते-आते,
बेघर हो गये है हम चंद रूपये कमाते-कमाते।
वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता,
किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता।
सूना-सूना सा मुझे घर लगता है,
माँ नहीं होती है तो बहुत डर लगता है।
आईना देख कर तसल्ली हुई,
हमको इस घर में जानता है कोई।
अपने घर के लोग अगर दुश्मनी करें,
किस आसरे पे यारों बसर जिन्दगी करें।
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक कदम है,
हर घर में बस एक ही कमरा कम है।
दोस्ती कब और किस से हो जाएँ अंदाजा नहीं होता है,
दिल एक ऐसा घर है जिस में दरवाजा नहीं होता है।
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो तबर कर दे,
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे।
घर आ कर बहुत रोये माँ-बाप अकेले में,
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते नहीं थे मेले में।
लोग टूट जाते है एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में।
इतना न सवारों अपने जिस्म को इसे तो मिट्टी में मिल जाना है,
सवारना है तो अपनी रूह को सवारों जिसे परमात्मा के घर जाना है।
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते,
इसलिए तो तुम्हे हम नजर नहीं आते।
Ghar Ki Yaad Me Shayari
पता अब तक नहीं बदला हमारा,
वही घर है वही क़िस्सा हमारा।
गलतियाँ करने से मैं अब घबराने लगा हूँ,
जिम्मेदारियाँ घर की मैं जब से उठाने लगा हूँ।
अपना गम ले कर कहीं और न जाया जाएँ,
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाएँ।
कभी दिमाग कभी दिल कभी नजर में रहो,
ये सब तुम्हारे ही घर है किसी भी घर में रहो।
मुमकिन है हमें माँ-बाप भी पहचान न पायें,
बचपन में ही हम घर कमाने निकल आयें।
आज फिर घर में कैद हर हस्ती हो गई,
जिन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई।
मकान बहुत आसानी से बन जाते हैं जनाब,
घर बनाना बड़ा मुश्किल है।
सफ़र का पता नहीं चलता साहब,
बस वो रास्ता घर का होना चाहिए।
छोटी उम्र में भी अपने पैरो पर खड़े हो जाते है,
जिम्मेदारियाँ हो सर पर तो बच्चे बड़े हो जाते है।
भूले से भी ना तोड़ना किसी का घर कभी,
क्योंकि इस पाप की सजा जरुर मिलती है।
तन्हाई को घर से रुख़सत कर तो दो,
सोचो किस के घर जायेगी तन्हाई।
जो चलना भी नही जानते थें,
आज घर की जिम्मेदारियों ने दौड़ना सिखा दिया।
वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत हैं,
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं।
अपने ही घर से झांकने को डरता हूँ,
उधार की मुसीबतें दरीचों तक लाया हूँ।
हम ने घर की सलामती के लिए,
ख़ुद को घर से निकाल रक्खा है।
“अज़हर अदीब”
परिवार तो अब भीतर ही भीतर टूट जाते हैं,
मगर घर खड़े रह जाते हैं बेशरमों के तरह।
उड़ा देती है नींद कुछ जिम्मेदारियाँ घर की,
रात में जागने वाला हर शख्स आशिक नही होता।
समझ के आग लगाना हमारे घर में तुम,
हमारे घर के बराबर तुम्हारा भी घर है।
जब छत कम पङी,
दोनो ने एक दूसरे में घर बना लिया।
इलाही मेरे दोस्त हों खैरियत से,
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं।
घर के उजाले का जिम्मा है मुझपर,
अब डगमगाने लगे चिराग तो जलना पड़ रहा है मुझे।
आदमी होता है माहौल से अच्छा या बुरा,
जानवर घर में रखे जाएं तो इन्सान से हैं।
Ghar Ki Yaad Aaye To Kya Kare
कल जाने कैसे होंगे कहाँ होंगे घर के लोग,
आँखों में एक बार भरा घर समेट लूँ।
दूर होके भी जो हमेशा पास होती है,
वो एक फॅमिली है जो सभी की ख़ास होती है।
आज फिर हास्टल में कहीं से इक मीठी खुशबू छाई है,
लगता है किसी के हिस्से में माँ के हाथ की रोटी आई है।
मुझे अपने घर से निकाल रहे हो कैसे दिल से निकाल पाओगे,
हजारों लोगों से मिलोगे, तब भी कोई मुझ जैसा नहीं पाओगे।
कमरा भी तो यंहा भी है पर घर नहीं सनता तो यंहा भी है,
मगर शांति नहीं, जिसकी कमी खलती है,,
घर दूर रहने पर घर की यादो से सीना आज भी जलती है।
घर और परिवार के बिना जिंदगी नीरस रह जाती है,
सिर्फ दौलत कहाँ किसी शख्स के काम आती है।
दूर रहने पर घर का खाना याद आता है,
खाने के वक्त माँ का बुलाना याद आता है।
एक इंसान को 2 चीज़ें कभी नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए,
अपना परिवार और अपना बिज़नेस या पेशा।
मैं अपने परिवार के प्यार के कारण ही स्वयं को संभाल पाती हूँ।
चौखट पर बैठी वो माँ आज भी याद है,
उसके आँखों आई विदाई की आँशु आज भी मेरे आँखों में रुके हुए है।
ज्ञान तो व्यक्ति पुस्तकों से प्राप्त कर सकता हैं,
किन्तु अपने व्यक्तित्व का निर्माण वह अपने परिवार द्वारा प्राप्त संसकारो से ही कर पाता हैं।
घर में कमरे हुआ करते थे तब,
कमरों में हो गया है घर अब।
गाँव की गलियाँ मिलती है किसी अंजान की तरह,
शहर से मैं अपने घर जाता हूँ एक मेहमान की तरह।
इन रिश्तों की बारीकियों को अगर समझा जाएँ,
तो कैसे किसी मकान को माँ बिन घर समझा जाएँ।
घर के बाह्रर दुनियादारी है,
घर के भीतर दुनिया सारी है।
रात थी और सन्नाटे में शोर था,
तुम रो रहे थे या माजरा कुछ और था।
जिन्दगी जब इंसान को आजमाती है,
तो उसे वो घर से दूर ले जाती है।
खरीद पायें ना सुकून पैसा वो बेकार का,
घर को घर बनाया नहीं इन्सान वो किस काम का।
माँ का आंचल फटा हुआ अच्छा नहीं लगता,
घर किसी का हो बटा हुआ अच्छा नहीं लगता।
Ghar Ki Yaad Par Shayari
चल दूर कहीं एक घर बनाते है,
दुनिया से अलग इक दुनिया बसाते है।
जिन्दगी ऐसा भी वक्त लाती है,
घर जाने के लिए भी झूठ बुलवाती है।
फुरसतों की गर्म चादर लपेटे बैठा है,
घर मेरे बचपन की यादें समेटे बैठा है।
अपने ही हाथों अपना घर जला रहे है वो लोग,
लोगों के दिलों में नफरत बढ़ा रहे है जो लोग।
कोई वीरानी सी वीरानी है,
दश्त को देख के घर याद आया।
“मिर्ज़ा ग़ालिब”
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला।
“बशीर बद्र”
एक मकान तब तक घर नहीं बन सकता,
जब तक उसमे दिमाग और शरीर दोनों के लिए भोजन और भभक ना हो।
“बेंजामिन फ्रैंकलिन”
कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख,
एक अजनबी की तरह मैं ख़ुद अपने घर में था।
“राजेन्द्र मनचंदा बानी”
बोल मीठे ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती घर बड़ा हो,
या छोटा अगर मिठास ना होंतो इंसान क्या चींटियां भी नहीं आती।
ऐसा घर तक साथ रहेगा और परिवार श्मशान तक,
जबकि कर्म और धर्म इस के साथ परलोक में साथ रहेगा।
अजब अंदाज से ये घर गिरा है,
मिरा मलबा मिरे ऊपर गिरा है।
कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।
खुला ना रख हर के लिए दिल का दरवाजा,
ये दिल एक घर है इसे बाजार मत बना।
तोड़ दिए मैंने घर के आईने सभी,
प्यार में हारे हुए लोग मुझसे देखे नहीं जाते।
अपने मेहमान को पलकों पे बिठा लेती है,
गरीबी जानती है घर में बिछौने कम है।
घर के बाहर ढूँढ़ता रहता हूँ दुनिया,
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है।
तमाम रात मेरे घर को एक दर खुला रहा,
मैं राह देखती रही वो रास्ता बदल गया।
तुम परिन्दें का दुःख नहीं समझे,
पेड़ पर घोंसला नहीं घर था।
ना जाने माँ क्या मिलाया करती है आटे में,
ये घर जैसी रोटियां और कहीं मिलती ही नहीं।
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा।
Ghar Ki Yaad Me Status
जिंदगी की उलझनों में हम खो गए,
दोस्त शायद हम बड़े हो गए।
कुछ अच्छा होने पर जो इंसान सबसे पहले याद आते हैं,
जिंदगी का सबसे कीमती इंसान होता है।
संबंधो को निभाने के लिए समय निकालियें वरना जब आपके पास समय होगा,
तब तक शायद संबंध ही ना बचें।
यादो का समूह होता है,
घर का बरामदा जंहा खड़े होक गांव का नजारा लिए करते थे,,
उसकी याद अभी सीने से निकल ही जाती है।
जब लाइफ की सब होप्स डूब रही हो पानी में,
फॅमिली की नाव कही आस पास ही मिलेगी।
तेरे घर का पता तो जानता हूँ मैं, पर वहाँ जाता नहीं,
क्योंकि डरता हूँ कि, कहीं तू मुझसे रूठ न जाए।
एक खुशल परिवार का निर्माण,
उस परिवार में रह रहे उसके सदस्य ही कर सकते है।
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।
माँ पहले आँसू आते थे तो तुम याद आती थी,
आज तुम याद आती हो और आँसू निकल आते है।
मैं जब सादी सुधा नही था तब जादा यारो से दूर था,
जब से हुआ विवाह है यादो ने बनाया मुझे अपना यार है।
घर जाने की ख़ुशी अलग हीं होती है,
घर जैसी जगह और ‘कहीं’ नहीं होती है।
घर से दूर रहने का ‘दर्द’ ना पूछो क्या होता है,
तन भले कहीं और हो, लेकिन दिल वहीं होता है।
परिवार से बड़ा कोई धन नही होता हैं.
किसी और के घर से अपने घर की तुलना कभी नहीं करनी चाहिए।
प्यार में सभी में थोड़ी बहुत खामियां जरूर होती हैं,
लेकिन परिवार उसको ‘सदैव’ एक साथ बाँधे रखने का कार्य करता हैं।
जब मैं एक मुद्दत बाद शहर से घर आता हूँ,
मैं अपनों के बीच में खुद को पराया पाता हूँ।
हजारों मकान तलाश किये कोई ऐसा शहर न मिला,
महल मिले पर अपने माँ-बाप के जैसा घर ना मिला।
परिवार और घर जब साथ हो तो दुःख भी कम हो जाता है,
और सुख कम हो तो भी बढ़ जाता है,,
इसी लिए आज भी उन स्का याद बहुत आता है।
जो अपने पिता के पैरो को छूता है,
वो कभी गरीब नहीं होता मेरे दोस्त।
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